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Saturday, September 9, 2017

🌺 !! श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित !! 🌺

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥1
 अर्थ शरीर गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ,जो चारों फल धर्मअर्थकाम और मोक्ष को देने वाला हे।
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥
अर्थ  हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा  शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बलसदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कार दीजिए।
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1
अर्थ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2
अर्थ हे पवनसुत अंजनी नंदन!आपके समान दूसरा बलवान नही है।
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3
अर्थ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।
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कंचन बरन बिराज सुबेसा ,कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4
अर्थ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों,कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5
अर्थ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
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शंकर सुवन केसरी नंदन,तेज प्रताप महा जग वंदन॥6
अर्थ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7
अर्थ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8
अर्थ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है।श्री राम,सीताऔर लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9
अर्थ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।
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भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10
अर्थ आपने विकराल रुप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के
उदेश्यों को सफल कराया।
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11
अर्थ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12
अर्थ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा कीऔर कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे
भाई हो।
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13
अर्थ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14
अर्थ श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15
अर्थ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16
अर्थ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया ,जिसके कारण वे राजा बने।
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥17
अर्थ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18
अर्थ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19
अर्थ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20
अर्थ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।
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राम दुआरे तुम रखवारे,  होत न आज्ञा बिनु पैसा रे ॥21
अर्थ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है,जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ॥22
अर्थ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है,और जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नही रहता।
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23
अर्थ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24
अर्थ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है,वहाँ भूत,पिशाच पास भी नही फटक सकते।
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25
अर्थ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26
अर्थ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥27
अर्थ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28
अर्थ जिसपर आपकी कृपा हो,वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29
अर्थ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।
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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30
अर्थ हे श्री राम के दुलारे ! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते
है।
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥
अर्थ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।
1.) अणिमा जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर जाता है।
2.) महिमा जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।
3.) गरिमा जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।
4.) लघिमा जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।
5.) प्राप्ति जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।
6.) प्राकाम्य जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।
7.) ईशित्व जिससे सब पर शासन का सामर्थ्य हो जाता है।
8.)वशित्व जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32
अर्थ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33
अर्थ आपका भजन करने सेर श्री राम जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।
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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34
अर्थ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो  भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35
अर्थ हे हनुमान जी!आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है,फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36
अर्थ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है,उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37
अर्थ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।
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जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38
अर्थ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39
अर्थ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40
अर्थ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।
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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभुप॥41
अर्थ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्दमंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।


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🌺  !! पांडव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं !!  🌺 


1. युधिष्ठिर    2. भीम         3. अर्जुन       4. नकुल       5. सहदेव
( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे, परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है।) यहाँ ध्यान रखें किपाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की माता कुन्ती थीं ……तथा , नकुल और सहदेव की माता माद्री थी। वहीं …. धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र कौरव कहलाए जिनके नाम हैं:-
1. दुर्योधन                                  51. पाशी
2. दुःशासन                                52. वृन्दारक
3. दुःसह                                    53. दृढ़वर्मा
4. दुःशल                                   54. दृढ़क्षत्र
5. जलसंघ                                  55. सोमकीर्ति
6. सम                                       56. अनूदर
7. सह                                       57. दढ़संघ
8. विंद                                       58. जरासंघ
9. अनुविंद                                  59. सत्यसंघ
10. दुर्धर्ष                                   60. सद्सुवाक
11. सुबाहु                                  61. उग्रश्रवा
12. दुषप्रधर्षण                            62. उग्रसेन
13. दुर्मर्षण                                 63. सेनानी
14. दुर्मुख                                   64. दुष्पराजय
15. दुष्कर्ण                                 65. अपराजित
16. विकर्ण                                  66. कुण्डशायी
17. शल                                     67. विशालाक्ष
18. सत्वान                                 68. दुराधर
19. सुलोचन                               69. दृढ़हस्त
20. चित्र                                     70. सुहस्त
21. उपचित्र                                71. वातवेग
22. चित्राक्ष                                 72. सुवर्च
23. चारुचित्र                               73. आदित्यकेतु
24. शरासन                                74. बह्वाशी
25. दुर्मद                                    75. नागदत्त
26. दुर्विगाह                               76. उग्रशायी
27. विवित्सु                                 77. कवचि
28. विकटानन्द                           78. क्रथन
29. ऊर्णनाभ                              79. कुण्डी
30. सुनाभ                                  80. भीमविक्र
31. नन्द                                     81. धनुर्धर
32. उपनन्द                                82. वीरबाहु
33. चित्रबाण                               83. अलोलुप
34. चित्रवर्मा                               84. अभय 
35. सुवर्मा                                  85. दृढ़कर्मा
36. दुर्विमोचन                             86. दृढ़रथाश्रय
37. अयोबाहु                               87. अनाधृष्य
38. महाबाहु                                88. कुण्डभेदी
39. चित्रांग                                  89. विरवि
40. चित्रकुण्डल                           90. चित्रकुण्डल
41. भीमवेग                                91. प्रधम
42. भीमबल                               92. अमाप्रमाथि
43. बालाकि                                93. दीर्घरोमा
44. बलवर्धन                               94. सुवीर्यवान
45. उग्रायुध                                95. दीर्घबाहु
46. सुषेण                                   96. सुजात
47. कुण्डधर                               97. कनकध्वज
48. महोदर                                 98. कुण्डाशी
49. चित्रायुध                               99. विरज
50. निषंगी                                 100. युयुत्सु
(इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहन भी थीजिसका नाम""दुशाला""था, जिसका विवाह "जयद्रथ" से हुआ था)

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🌺  !! श्री मद्-भगवत गीता" के बारे में रोचक तथ्य !!  🌺 
1- किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।
2- कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।
3- भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।
4- कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी
5- कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।
6- कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में
7- क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।
8- कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय
9- कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक
10- गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।
11- गीता को अर्जुन के अलावा और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने
12- अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को
13- गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में
14- गीता किस महाग्रंथ का भाग है?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।
15- गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद
16- गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना
17- गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.-     श्रीकृष्ण ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.
अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद
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🌺  !! अधूरा ज्ञान खतरना होता है !!  🌺 

33 करोड नहीँ 33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मेँ। कोटि= प्रकार। देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है, कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता। हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं........
कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे:-
12 प्रकार हैँ:- आदित्य , धाता, मित, आर्यमा, शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष, सविता, तवास्था, और विष्णु...! 
8 प्रकार हैं:- वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
11 प्रकार है:- रुद्र: ,हर, बहुरुप, त्रयँबक, अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली। एवँ  दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।
कुल:-
12+8+11+2=33 कोटि

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